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शिक्षक निर्वाचन में पुराना पेंशन बना प्रमुख मुद्दा

डॉ० एस० के० पाण्डेय

कानपुर -उन्नाव खंड शिक्षक निर्वाचन में प्रत्याशी अंतिम जोर आजमाइश में लगे हुए हैं। इस चुनावी गहमागहमी को शैक्षणिक परिसरों में महसूस किया जा सकता है। इस बार शिक्षक निर्वाचन में राजनीतिक पार्टियों ने खुले तौर पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। पहले एक नैतिकता के तहत प्रत्याशियों का समर्थन राजनीतिक पार्टियां खुल्लम, खुल्ला नहीं करती थीं लेकिन इस बार पार्टी प्रत्याशी के साथ – साथ शिक्षक संघों के प्रत्याशी मैदान में हैं जिसने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।

शिक्षक बिरादरी के इस चुनाव में धनबल की धमक भी इस बार देखी जा सकती है। शिक्षक मतदाताओं के नंबर पर पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में फोन कॉल्स आ रहे हैं। इन फोन कॉल्स पर जो ‘प्रचारक’ अपने प्रत्याशियों को समर्थन देने के लिए मनुहार करते हैं वे कहीं से भी कार्यकर्ता नहीं लगते। उनकी बातचीत तरीका ऐसा है जैसे कि किसी कॉल सेंटर के कर्मचारी ने फोन किया हो। यदि यह आशंका सही है तो इस बात की पूरी संभावना है कि पार्टीगत प्रत्याशी अपने धनबल का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि शिक्षक संघों के प्रत्याशी मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं।

शिक्षकों का मानना है कि शिक्षक निर्वाचन में ऐसी परिस्थिति उचित नहीं है। शिक्षकों को तो समाज के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

इतना ही नहीं शिक्षकों को मतदाता स्थल से वंचित रखने का आरोप भी लगाया जा रहा है। ऐसा आरोप है कि सत्ताधारी दल के एक प्रत्याशी के समर्थक मतदान स्थल का गलत पता बता रहें हैं ताकि वे मतदान से वंचित हो जाएं।

गौर तलब है कि शिक्षक, कर्मचारियों में इस समय सरकार की नीतियों के खिलाफ रोष व्याप्त है। इनके जेहन में यह बात यह बात घर कर कई है कि सरकार उनकी सुन ही नहीं रही है। पुरानी पेंशन की मांग पर सरकार द्वारा ध्यान न दिया जाना उनके गुस्से का प्रमुख कारण है। पिछले दिनों कई राज्यों में पुरानी पेंशन की बहाली ने शिक्षकों में पुरानी पेंशन की चाहत बढ़ा दी है। दिलचस्प बात यह है कि जहां शिक्षक संघ या निर्दलीय प्रत्याशियों में अपने मुद्दों में पुरानी पेंशन को अपने द्वारा गिनाए गए मुद्दों में सबसे ऊपर रखा है वहीं सत्ताधारी दल समर्थित एक प्रत्याशी ने अपने पर्चे में पुरानी पेंशन तो क्या, शिक्षकों के किसी मुद्दे को नहीं रखा है।

शिक्षकों में इस बात से भी नाराजगी है कि उनके एनपीएस का पैसा एलआईसी जैसी जिन सरकारी कंपनियों में डाला गया है उन कंपनियों द्वारा निजी पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है और इस तरह शिक्षकों की जमा राशि के डूबने का खतरा है। अडानी समूह पर अमरीकी फर्म हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए घोटाले के आरोपों और उसके बाद शेयर बाजार की बेतहाशा गिरावट तथा उसी समय एलआईसी – एसबीआई द्वारा बाजार के मुकाबले ऊंचे दामों पर अडानी ग्रुप के शेयर की खरीद ने शिक्षकों के बीच भय और निराशा का माहौल बना दिया है।

शिक्षक वर्ग सरकार द्वारा समय – समय पर थोपे जाने वाले गैर शैक्षणिक कार्यों के कारण भी नाराज हैं। एक तरफ प्रशासन की तरफ से शिक्षण की गुणवत्ता सुधारने का दबाव बनाया जाता है तो दूसरी तरफ पठन – पाठन से इतर कामों में शिक्षकों के सामर्थ्य का दुरुपयोग किया जाता है। फिलहाल माहौल गरम है। दिलचस्प होगा कि पार्टी समर्थित प्रत्याशी के दांवपेंच सफल होते हैं या शिक्षकों का दुखदर्द रंग लाता है। मतदान 30 जनवरी को है। देखना है कि इस चुनाव में राजनीतिक दलों का सिक्का चलता है यह शिक्षक संगठनों का।

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