बुद्ध पहले दार्शनिक हैं जिन्होंने दुख की चर्चा की : प्रो. चितरंजन मिश्र

गोरखपुर। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर चितरंजन मिश्र ने कहा है कि बुध्द पहले विचारक हैं जिनके विचार भारत से बाहर गए जबकि जगत गुरुओं के विचार उनके मठों में ही केंद्रित रह गए।

प्रो.मिश्र गुरुवार को अपने शोध छात्र रहे डॉक्टर चतुरानन ओझा व अन्य शिष्यों के आग्रह पर ‘ बुद्ध और हमारा समय ‘ विषय पर फेसबुक लाइव संवाद में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत के सभी दार्शनिकों ने अधर्म को छोड़ने की बात की है लेकिन बुद्ध ने गतकालिक अर्थात अप्रासंगिक हो गए धर्म को भी छोड़ देने की बात की थी. बुद्ध ने कहा था कि धर्म की नाव हमने तुम्हें नदी पार करने के लिए दिया. नदी पार कर लेने के बाद सिर पर रखकर ढोने के लिए नहीं.

प्रो.मिश्र ने कहा कि बुद्ध पहले विचारक हैं जिन्होंने अपनी तपस्या के दौरान भूख भी सत्य है कहा था. भूख जैसी सांसारिक सच्चाई को उन्होंने स्वीकार किया था. आज जब हिंसा को जायज ठहराया जा रहा है,एक हिंसा से दूसरे हिंसा की तुलना की जा रही है, ऐसे समय में बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता कहीं अधिक हो जाती है. बुद्ध पहले दार्शनिक हैं जिन्होंने दुख की चर्चा किया है और दुख के कारण बताए हैं. तृष्णा को सबसे बड़ा दुख का कारण उन्होंने माना है.

प्रो.मिश्र ने कहा कि बुद्ध ने जिस अवतारवाद का विरोध किया था वह विचार और विचार का विरोध था. आज के समय में विरोध करना कठिन होता जा रहा है. त्याग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि छोड़ने वाले को हमेशा महान कहा गया है और त्याग करने वाला ही ज्ञानी बना ह.  बुद्ध ने राजमहल के वैभव को त्याग दिया था. आज पूरी दुनिया उन्हें पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी महानता को प्रणाम कर रही है और उनके विचारों की प्रासंगिकता महसूस कर रही है.

संवाद कार्यक्रम के दौरान पूर्व कुलपति प्रो.अशोक कुमार ने टिप्पणी करते हुए शानदार व्याख्यान के लिए शुभकामनाएं दी. हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल राय ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि इस समय संकटों के सापेक्ष बुद्ध के विचारों की संगत व्याख्या के लिए हार्दिक आभार. सुंदर और सार्थक व्याख्यान है. प्रो.कमलेश गुप्त ने स्वागत योग्य व्याख्यान बताया. डॉ केशव बिहारी त्रिपाठी ने कहा कि व्याख्यान प्रभावशाली है.

संवाद आयोजन के लिए प्रो. राजेश मल्ल, सुनीता सिंह, सीमा त्रिपाठी, आनंद शुक्ल, चक्रपाणि ओझा,सुप्रिया पाठक, विभूति नारायण ओझा,डा. अखिल मिश्रा,प्रो.डीएन दुबे,डा. चंद्रेश्वर, डॉ.डी एम मिश्र, वेदप्रकाश, हिमांशु त्रिपाठी, डा. सुनील यादव, आदि ने सार्थक व्याख्यान में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी.