अलीगढ़ में दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की डॉ कफ़ील की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस

इलाहाबाद। डॉक्टर कफ़ील खान के खिलाफ अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में दर्ज एफआईआर ( FIR 700/2019)  को पूर्णरूप से समाप्त करने की याचिका पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने उत्तर प्रदेश सरकार को आज नोटिस जारी किया। इस याचिका पर अगली सुनवाई  6 अप्रैल को है।

डॉ कफील खान के खिलाफ 13 दिसम्बर को अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाने में धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए 153 ए, 153 बी, 505 (2) और 109 भादवि के तहत केस दर्ज किया गया था. इस केस में आरोप लगाया गया है कि डा. कफील खान ने 13 दिसम्बर की शाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के गेट पर सम्बोधन के दौरान दो समुदायों के प्रति नफरत फैलाने वाला भाषण दिया.

केस दर्ज होने के डेढ़ माह बाद यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स ने बीआरडी मेडिकल कालेज के निलम्बित प्रवक्ता डा. कफील खान को 30 जनवरी की रात 11 बजे मुम्बई में गिरफ्तार कर लिया. डा. कफील खान बिहार में सीएए-एनआरसी विरोधी प्रदर्शन व कार्यक्रम में भागीदारी करने के बाद मुम्बई पहुंचे थे. उन्हें एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तारी के बाद उन्हें अलीगढ़ लाया गया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में मथुरा जेल भेज दिया गया था। बाद में उन पर रासुका लगा दिया। वह करीब आठ महीने तक जेल में बंद रहे। हाई कोर्ट इलाहाबाद ने

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक सितम्बर 2020 को डॉ कफील खान पर अलीगढ़ जिला प्रशासन द्वारा लगाए गए राष्टीय सुरक्षा कानून और उसको राज्य सरकार की स्वीकृति को गैरकानूनी करार देते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था।

डॉ कफील खान ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दायर कर अपने खिलाफ अलीगढ़ में दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की अपील की। याचिका में उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश सरकार ने उन पर रासुका लगा कर 8 माह जेल में रख कर प्रताड़ित किया। उच्च न्यायलय इलाहाबाद एवं सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि उनके भाषण में किसी भी प्रकार से देश को तोड़ने की नही बल्कि देश को जोड़ने की बात कही गई थी। किसी भी प्रकार का कोई भी सबूत न मिलने के कारण न्यायालय द्वारा डॉ कफील खान के ऊपर लगाए रासुका को अवैध करार कर बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। याचिका में उन्होंने यह भी कहा है कि वह एक  सरकारी कर्मचारी हैं, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और गिरफ़्तारी में शासन से अनुमति नहीं ली गई थी। इसलिए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को पूर्णरूप से समाप्त किया जाना चाहिए।

इस याचिका पर आज हुई सुनवाई में अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया।