मोदी सरकार के पतन की राह तय करेगा किसान आंदोलन : डा. संदीप पांडेय

गोरखपुर। मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एवं सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ संदीप पांडेय ने कहा कि किसान आंदोलन में देश को बदलने की ताकत है और हम सभी को इससे जुड़ना चाहिए। किसान आंदोलन ने संघर्ष और सेवा का एक माॅडल हमारे सामने रखा है। यदि मोदी सरकार ने हठ छोड़कर मांगे नहीं मानी तो किसान आंदोलन उनकी पतन की राह तय करेगा।
डाॅ संदीप पांडेय आज दोपहर हैप्पी मैरेज हाउस में जन संस्कृति मंच द्वारा ‘ जन आंदोलन और उसकी चुनौतियां ‘ विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम को  बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन पीछे हटने वाला आंदोलन नहीं है। इस आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा-आरएसएस द्वारा हिन्दू-मुसलमानों के बीच खड़ी की गई खाई को पाट दिया है। इस आंदोलन ने कृषि कानूनों की सचाई के साथ-साथ कार्पोरेट से नियंत्रित होने वाली मोदी सरकार के असली चेहरे को भी जनता के सामने रख दिया है।
उन्होंने कहा कि चुनावी बांड के जरिए मोदी सरकार ने अडानी-अम्बानी और अन्य पूंजीपतियों से अकूत धन लिया है और इसके बदले अब वह पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है। जनता के सुख-दुःख से उसका कोई लेना-देना नहीं है। पिछले एक दशक से देश में हुए जन आंदोलनों की चर्चा करते हुए डाॅ पांडेय ने कहा कि मोदी-योगी सरकार पूरे देश में जिस तरह जन आंदोलनों और अभिव्यक्ति की आजादी पर पर दमन चक्र चला रही है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ लेकिन धीरे-धीरे लोगों में सरकार के दमन का भय खत्म हो रहा है और आंदोलनों में लोगों की भागीदारी बढ़ रही है।
किसान आंदोलन की वैचारिक दृढ़ता, संगठनात्मक मजबूती की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यूपी के चुनाव में किसान आंदोलन निर्णायक भूमिका निभायेगा। यूपी में अवध और पूर्वांचल में किसान आंदोलन को मजबूती देने की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए हम सभी को प्रयास करना चाहिए।
संवाद कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पत्रकार मृणाल मथुरिया ने संसदीय लोकतंत्र की विसंगतियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारी संसद में युवाओं, महिलाओं, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता जा रहा है। हमारे देश की औसत आयु 29 वर्ष की है जबकि सांसदों की औसत आयु 57 वर्ष है। इसी तरह 49 फीसदी महिला आबादी का संसद में प्रतिनिधित्व सिर्फ 14 फीसदी है। अल्पसंख्यकों की स्थिति भी इसी तरह है। सांसदो की औसत सम्पति सात करोड़ है जबकि देश की बहुसंख्यक आबादी गरीब है। यही कारण है कि संसद में देश की जनता की आवाज नहीं उठ पा रही है। उन्होंने  कहा कि अपने देश में लोकतंत्र प्रधानमंत्री केन्द्रित हो गया है जबकि हम प्रधानमंत्री नहीं सांसद को चुनते हैं। सांसद की भूमिका बहुत सीमित कर दी गई है। इस स्थिति को बदलने के लिए संघर्ष करना होगा। उन्होंने कोराना काल में सरकार की विफलता का जिक्र करते हुए कहा कि हमने उस समय प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगते हुए ऑन लाइन पिटीशन पर लोगों के हस्ताक्षर की अपील की थी जिसे आठ लाख से अधिक लोगों का समर्थन मिला। हमें कोराना में सरकार की विफलता का भूलना नहीं है और इस आंदोलन को अब देश के कोने-कोने में जनता के बीच ले जाना है। उन्होंने मुख्यधारा की मीडिया को कार्पोरेट का गुलाम बताते हुए लोगों से पब्लिक फंडेड मीडिया को समर्थन देने की अपील की।
संवाद कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम की चर्चा करते हुए कहा कि स्थितियां एकदम निराशाजनक नहीं हैं। देश में जन आंदोलन जगह-जगह फूट रहे हैं और उसका प्रभाव भी दिखने लगा है लेकिन मीडिया हमें उसकी जानकारी देने से जानबूझ कर वंचित कर रहा है। इसलिए हमें सूचनाओं के प्रचार-प्रसार पर भी अपने को फोकस करना पड़ेगा। उन्होंने किसान आंदोलन की चर्चा करते हुए कहा कि हमें समझाया जा रहा था कि ऐसी व्यवस्था बनायी जा रही हैं जहां एसडीएम के स्तर पर किसानों की समस्या हल हो जाएगी। इस माॅडल की हकीकत हरियाणा के करनाल में दिखा गई। उन्होंने कहा कि आज देश में जनकल्याणकारी नहीं बेचू सरकार है। राजनैतिक और समाजिक आंदोलन में राजनैतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन वे खुद डरे हुए हैं और अपनी भूमिका का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं।
शहर के वरिष्ठ राजनैतिक व समाजिक कार्यकर्ता राजेश सिंह ने विपक्षी राजनीतिक दलों की भूमिका पर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि अधिकतर राजनैतिक दल अपनी विचारधारा से पीछे हट गए हैं। आज वे देश के केन्द्रीय मूल्य धर्मनिरपेक्षता व समरसता पर वोट बैंक की चिंता में  बोलने से बचने लगे हैं। हमें उन पर दबाव बनाना पड़ेगा कि वे सड़क से संसद तक संघर्ष को तेज करें।
सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. अजीज अहमद ने कहा कि आज हमें रोज लूटा व धोखा दिया जा रहा है। देश पीछे जा रहा है। ऐसे हालात में चुप बैठना ठीक नहीं है। हमें देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आना होगा।
वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चौधरी ने कहा कि देश में राजनैतिक संकट बढ़ रहा है। देश की जनता इसका समाधान ढूंढने की कोशिश कर रही है जिसका प्रकटन जन आंदोलनों में हो रहा है। उन्होंने दलित, महिला, किसान, छात्र-युवा आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि जन आंदोलनों में जनता का उपरी हिस्सा शामिल दिख रहा है लेकिन अभी सामान्य जनता की भागीदारी कम है। हमारा कार्यभार यही है कि जन आंदोलनों के बारे में सामान्य जनता तक पूरी जानकारी पहुंचाए और उसकी भागीदारी कराएं।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समाजवादी नेता फतेहबहादुर सिंह ने उत्तर प्रदेश में जनआंदोलनों के एकीकरण के प्रयास के बारे में जानकारी देते हुए सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने किया। कार्यक्रम के आखिर में लोगों ने आंदोलनों के एकीकरण व राजनीतिकरण, पेगासस मुद्दा, यूपी चुनाव के सम्बन्ध में सवाल पूछे जिसका जवाब डा. संदीप पांडेय ने दिया। इस मौके पर अब्दुल्ला सिराज, ऐपवा नेता गीता पांडेय, समाजवादी नेता मिसबाहुुद्दी वारसी, जन संस्कृति मंच के सचिव सुजीत श्रीवास्तव, सुबुर अहमद, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, शैलेन्द्र सिंह कबीर, धर्मेन्द्र श्रीवास्तव, पवन श्रीवास्तव, बैजनाथ मिश्र सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे।