स्मृति

‘ मैनेजर पांडेय का जाना हिन्दी साहित्य आलोचना के एक बड़े प्रकाश स्तम्भ का बुझ जाना है ’

गोरखपुर। लेखक और सांस्कृतिक संगठनों-जन संस्कृति मंच, प्रेमचन्द साहित्य संस्थान, प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ ने आज शाम प्रेमचंद पार्क में शोक सभा आयोजित कर प्रख्यात मार्क्सवादी समालोचक प्रो मैनेजर पांडेय को श्रद्धाजंलि दी।

शोक सभा में गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान के सचिव डाॅ राजेश मल्ल ने कहा कि भारतीय समाज के मूल्यांकन के सन्दर्भ में प्रो मैनेजर पांडेय द्वारा किया गया काम ऐतिहासिक है। उन्होंने भारतीय समाज के आंतरिक उपनिवेश की परत दर परत खोलन की जो दृष्टि दी वह बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिन्दी आलोचना की अपनी भाषा विकसित की जिसे जातीय आलोचना कह सकते हैं। वे हमारे लिए उर्जा के स्रोत थे। उनका न रहना हिन्दी साहित्य आलोचना के एक बड़े प्रकाश स्तम्भ का बुझ जाना है।

डाॅ राजेश मल्ल ने प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा 1997 में निराला पर कराये गए सेमिनार में प्रो मैनेजर पांडेय की उपस्थिति सहित कई कार्यक्रमों की यादें साझा की।

वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा कि हमारी उनके साथ तीन दशक से अधिक की साहित्यिक यात्रा रही है। वे जटिल से जटिल विषय को बड़ी सहजता के साथ सम्प्रेषित करते थे जिसे सामान्य लोग भी ग्रहण कर लेते थे। उनकी यह खूबी मार्क्सवाद की देन है। उन्होंने मार्क्सवाद को बहुत व्यापक फलक पर लिया। वे वैज्ञानिक धरातल पर खड़े होकर मार्क्सवाद की व्याख्या करते थे।

वरिष्ठ कवि एवं ‘ आयाम ’ के संयोजक देवेन्द्र आर्य ने कहा कि प्रो मैनेजर पांडेय सभ्रान्त हिन्दी आलोचना के बरक्स एक दूसरी धारा के चेहरा थे जिसे जनपदीय चेहरा कह सकते हैं। उनका लिखा अक्रांत नहीं करता है।

 

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अस्सिटेंट प्रोफेसर डाॅ रामनरेश राम ने प्रो पांडेय से जुड़ी यादें साझा करते हुए उनके संवेदनशील व्यक्तित्व की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वे सत्ता के आगे न झुकने वाले आलोचक थे। उन्होंने मार्क्सवादी आलोचना को विस्तारित किया। प्रो मैनेजर पांडेय ने समाजशास्त्रीय ज्ञान मींमासा को हिन्दी आलोचना में प्रवेश कराया। हिन्दी का साहित्यिक-सांस्कृतिक जगत उन्हें आवयविक बौद्धिक और हिन्दी आलोचना के परिसर को जनतांत्रिक बनाने वाले आलोचक के रूप में याद करेगा। उन्होंने कहा कि मैनेजर जी चाहते थे कि सांस्कृतिक आंदोलन का दस्तावेजीकरण किया जाय और इस दिशा में उन्होंने काम को आगे भी बढ़ाया। अकादमिक कामकाज को जनोन्मुख बनाना उनकी चिंता में शामिल था।

आलोचक प्रो अरविंद त्रिपाठी ने कहा कि प्रो मैनेजर पांडेय के निधन से सहित्य और समाज में एक बड़ी रिक्ति के रूप में महसूस की जा रही है। वे बहुत साहस साफगोई से अपनी बात रखते थे। जो उनके देशी मिजाज का रंग था। वे एक ऐसे आलोचक थे जो साहित्य, जीवन, राजनीति और कला की लगातार व्याख्या कर रहे थे।

वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चौधरी ने कहा कि प्रो पांडेय की पुस्तक ‘ आलोचना की सामाजिकता’ ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्हें याद करने का सबसे सार्थक तरीका यह होगा कि हम साहित्य को समाज से जोड़ने और समाज वैज्ञानिक आलोचना को आगे बढ़ाने का काम करें।

श्रद्धाजंलि सभा में वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक राघवेन्द्र दूबे भाऊ ने प्रो पांडेय से मुलाकता और विमर्श की चर्चा करते हुए बदलाव की लड़ाई में उनकी चिंता को रेखांकित किया। प्रगतिशील लेखक संघ के वीरेन्द्र मिश्र दीपक और जनवादी लेखक संघ के जय प्रकाश मल्ल ने मैनेजर पांडेय को याद करते हुए अपने संगठन से श्रद्धाजंलि दी।

आखिर में एक मिनट का मौन रखकर प्रो मैनजर पांडेय को श्रद्धाजंलि दी गई। सभा का संचालन जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी, संदीप राय, फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ, अमोल राय, नितेन अग्रवाल , राजेश साहनी, ओंकार द्विवेदी , बैजनाथ मिश्र , मनोज मिश्र आदि उपस्थित थे ।

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