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दलित साहित्य की तरह दलित मुस्लिम साहित्य की भी स्वीकार्यता हो : डॉ अयूब राइन

गोरखपुर। ” दलित लेखकों की तरह मुस्लिम समाज के पसमान्दा और दलित लेखकों ने सैकड़ों वर्षों पूर्व से लिखना शुरू नहीं किया। बल्कि पूरा दलित मुस्लिम आन्दोलन सिर्फ 26-27 वर्ष ही पुराना है। दलित मुस्लिम लेखन बिल्कुल ही नवीन नहीं है, बल्कि लगभग सवा सौ वर्ष पुराना है। समय आ गया है कि दलित मुस्लिम लेखन को आधार मानते हुए “दलित मुस्लिम साहित्य” की स्वीकार्यता भी हो। दलित साहित्य की तरह मस्लिम समाज के दलितों (दलित मसलमानों) के लिए दलित  मुस्लिम साहित्य वक्त की ज़रूरत है। “

जाने माने दलित मुस्लिम चिंतक डॉ अयूब राइन ने यह बात कही। वे 18 जून को “सावित्री बाई फुले जन साहित्य केंद्र” के तत्वावधान में अपनी पुस्तक ” दलित मुस्लिम साहित्य और लेखक” का लोकार्पण और ” दलित- पसमांदा साहित्य और वैचारिकी “विषय पर विचार गोष्ठी में बोल रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन बशारतपुर में किया गया।

संगोष्ठी में डॉ अयूब राईन ने हासिये पर पड़े दलित मुस्लिम समाज को लेकर गंभीर विमर्श की जरूरत बतायी। उन्होंने कहा कि दलितों पर जितना और जिस तरह लेखन हुआ है, उस तरह दलित मुस्लिम समाज को लेकर नही हुआ है।परिणाम स्वरूप यह वर्ग अपनी सामाजिक आर्थिक समस्याओं को लेकर आज भी विमर्श से बाहर है।

उन्होंने कहा कि जब हम लोग दलित मुस्लिम साहित्य की बात करते हैं तो कहीं न कहीं यह उर्दू साहित्य से जुड़ता हुआ दिखता है। मूल काम तो दलित मुसलमानों के हालात को दलित मुसलमानों के द्वारा लिखे जाने का ही है।

बिहार के दरभंगा के रहने वाले डॉ अयूब राइन की यह किताब  मुस्लिम समुदाय के कई छुपे हुए पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डालती है, कि जैसा यह समाज बाहर से दिखता है वैसा है नहीं। इस समाज में भी सवर्ण, पिछड़े और दलित समुदाय मौजूद हैं। जो संवैधानिक दर्जा हिंदू दलितों को प्राप्त है वह दलित मुस्लिमों को नहीं मिल है। इस समाज की सामाजिक आर्थिक स्थिति आजादी के पचहत्तर साल बाद भी काफी बदतर बनी हुई है।

डॉ अयूब राइन ने 2012 में दलित मुस्लिम समाज नाम से संगठन बनाया है। वे त्रैमासिक शोध पत्रिका Journal of Social Reality का प्रकाशन करते हैं। उनकी अब तक चार पुस्तकें – भारत के दलित मुसलमान – एक (2013, पुनर्प्रकाशन 2019), पमरिया – (2015), भारत के दलित मुसलमान खण्ड दो (2018) एवं अंसारी नगीना (2021) के प्रकाशित हो चुकी हैं।

गोष्ठी में आजाद समाज पार्टी के शशिभूषण ने कहा कि हिंदू दलित और मुस्लिम दलित समुदाय के बीच दर्द और बेबसी का रिश्ता है। इसलिए दोनों को मिलकर संघर्ष करना होगा।

जन संस्कृति मंच के महासचिव एवं पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने पूर्वाञ्चल में नट, पमरिया और मुस्लिम जोगी की स्थिति पर बात रहते हुए कहा कि यह तीनों समाज एक साथ हिन्दू और मुस्लिम धार्मिक विश्वासों, परंपराओं और रीति -रिवाजों को मानता है और वे हिन्दू और मुस्लिम के बीच कोई भेद नहीं मानते लेकिन विभाजनकारी ताकतें इनको भी बांटने का काम कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि फासीवादी ताकतें अपनी विभाजनकारी राजनीति के लिए पसमांदा समाज को भ्रमित करने का प्रयास कर रही हैं और कुछ पसमांदा विचारक उनके झांसे में आकर उनकी ही भाषा बोल रहे हैं। वे इस बात की जानबूझ कर अनदेखी कर रहे हैं कि भाजपा सरकारों में सबसे भीषण दमन दलित और ओबीसी मुसलमानों पर ही हुआ है। मोदी सरकार दलित मुसलमानों को संवैधानिक अधिकार देने के बजाय उन्हें लाभार्थी बनने को प्रोत्साहित कर रही है। इस खतरे से सावधान रहने कि जरूरत है।

 लेखक इरशाद अहमद ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में जो उच्च तबका अशराफिया है वही जमीन,मदरसा और वक्फ संपत्तियों पर कुंडली मार कर बैठा है। नौकरियों में भी यही तबका आगे है। वह नहीं चाहता की दलित समुदाय आगे बढ़े।

डॉ असीम सत्यदेव ने कहा की चाहे मुस्लिम दलित समुदाय हो या हिंदू दलित समुदाय, जब तक आर्थिक संसाधनों से वह वंचित रहेगा, अलग अलग रूपों में उसका शोषण होता रहेगा। इसलिए धर्म ,मजहब से ऊपर उठकर अपनी सामाजिक , आर्थिक स्थितियों को आधार बनाकर संघर्ष करना होगा।

दलित चिंतक डॉ अलख निरंजन ने कहा कि दलित साहित्य और दलित समाज धर्म में अपनी मुक्ति का राह नहीं देखता और वह वैज्ञानिक, तर्कशील और अभेद की वैचारिकी पर खड़ा है। दलित मुस्लिम एयर पसमांदा साहित्य को भी इस वैचारिकी पर खड़ा होना होगा।

 

वरिष्ठ रंगकर्मी एवं कहानीकार राजाराम चौधरी ने ” दलित मुस्लिम साहित्य और लेखक” किताब को एंथरोपोलोजी बताते हुए कहा कि डॉ अयूब राइन बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उनकी किताब हमें उन समुदायों की जीवन परिस्थितियों से परिचित कराती है जिससे हम अनजान बने हुए हैं जबकि वे हमारे आस-पास ही हैं। इसके साथ साथ यह किताब दलित मुसलमान और पसमांदा आंदोलन , उसकी वैचारिकी, साहित्य से भी परिचित कराती है।

गोष्ठी में कैलाश विश्वकर्मा ने भी अपने विचार रखे। संचालन “सावित्री बाई फुले जन साहित्य केंद्र” के प्रभारी इमामुद्दीन ने और धन्यवाद ज्ञापन जे एन शाह ने किया।

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