स्वास्थ्य

टीबी और कुष्ठ उन्मूलन के लिए जिले की आरबीएसके टीम का हुआ संवेदीकरण

गोरखपुर। टीबी और कुष्ठ की बच्चों के बीच पहचान जटिल है और इनके प्रति अधिक सतर्कता की दरकार है । समय से पहचान हो जाए तो इनका सम्पूर्ण इलाज भी संभव है। समय से इलाज न होने पर बच्चों के लिए स्वास्थ्य जोखिम के साथ साथ शिक्षा संबंधी जोखिम भी बने रहते हैं। ऐसे बच्चों का स्कूल छूट जाता है और वह समाज की मुख्य धारा से काफी पीछे रह जाते हैं।

यह बातें जिला क्षय और कुष्ठ अधिकारी डॉ गणेश यादव ने कहीं । वह टीबी और कुष्ठ उन्मूलन के लिए जिले के सभी ब्लॉक में सक्रिय राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) टीम के सदस्यों के संवेदीकरण कार्यशाला को प्रेरणा श्री सभागार में बुधवार शाम को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने लक्षण वाले संभावित बाल मरीजों की स्क्रिनिंग के बाद जांच व इलाज के लिए निकटतम स्वास्थ्य इकाई पर रेफर करने की अपील की । डॉ यादव ने कहा कि बच्चों में कुष्ठ रोग के मिलने पर विशेष सतर्कता बरती जाती है। ऐसे पूरे गांव की कांटैक्ट ट्रेसिंग का प्रावधान है जहां बाल कुष्ठ रोगी मिलते हों। कुष्ठ और टीबी में एक महत्वपूर्ण समानता यह है कि दोनों के उपचाराधीन मरीज से इस बीमारी के संक्रमण की आशंका कम हो जाती है। समय से पहचान, जांच और उपचार न होने पर जहां टीबी की जटिलताएं बढ़ सकती हैं और वह ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (डीआर टीबी) का रूप ले सकती है, वहीं अगर कुष्ठ का भी समय से उपचार शुरू न हो तो दिव्यांगता या विकृति का खतरा हो सकता है ।

उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने बताया कि अगर स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चा कई दिनों से नहीं आ रहा है तो उसकी ट्रैकिंग अवश्य करें और पता करें कि उसे बुखार तो नहीं है । अगर बच्चों में दो सप्ताह  से अधिक की खांसी, रात में बुखार, तेजी से वजन घटने और भूख न लगने की समस्या हो तो टीबी की जांच अवश्य कराएं। जांच के लिए नजदीकी आयुष्मान आरोग्य मंदिर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेज सकते हैं। जांच के बाद अगर बच्चे में टीबी की पुष्टि होती है तो उसको सारी दवाएं सरकारी अस्पताल से दी जाती हैं और अन्य सभी जांचें भी सरकारी प्रावधानों के अनुसार ही होती हैं ।

जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ भोला गुप्ता ने बताया कि अगर शरीर पर कोई सुन्न दाग धब्बा हो जिसका रंग चमड़े के रंग के हल्का हो तो वह कुष्ठ भी हो सकता है । ऐसे लक्षण वाले बाल मरीजों को नजदीकी ब्लॉक स्तरीय अस्पताल पर भेंजे। अगर दाग धब्बों की संख्या पांच या उससे कम है तो पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोग होता है और अगर यह संख्या छह या छह से अधिक हो और नसें भी प्रभावित हों तो मरीज मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोग पीड़ित होता है। पीबी कुष्ठ रोगी का इलाज छह माह में और एमबी कुष्ठ रोगी का इलाज एक साल में हो जाता है।

इस अवसर पर आरबीएसके योजना की डीईआईसी मैनेजर डॉ अर्चना, डीपीसी धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्रा, मिर्जा आफताब बेग और फिजियोथेरेपिस्ट आसिफ प्रमुख तौर पर मौजूद रहे ।

बच्चों पर देंगे विशेष ध्यान

आरबीएसके चरगांवा के चिकित्सा अधिकारी डॉ बीके सिंह ने बताया कि दोनों बीमारियों और कार्यक्रम के बारे में उपयोगी जानकारी मिली है। बच्चों की स्क्रिनिंग करते समय लक्षणों का विशेष ध्यान रखा जाएगा और जो भी मरीज होंगे उन्हें निकटतम अस्पताल पर रेफर किया जाएगा ।

Related posts