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“ केदारनाथ सिंह अपनी कविताओं में बुद्ध से संवाद करते हैं “

कुशीनगर। “ केदारनाथ सिंह वर्तमान के प्रति प्रतिबद्ध हैं, वे आंख मूंदकर बुद्ध का संदेश नहीं ग्रहण करते, वे बुद्ध से प्रश्न और संवाद करते हैं। जीवन की धारा में वे बुद्ध को खोजते हैं। “

उक्त बातें बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर, प्रेमचंद साहित्य संस्थान और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में आयोजित “केदारनाथ सिंह की कविताओं में जनपद और जनपदीय संस्कृति” विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन 8 अक्टूबर को कुशीनगर के राजकीय बौद्ध संग्रहालय के अज्ञेय स्मृति सभागार में पहले सत्र “केदारनाथ सिंह की कविता में बुद्ध” कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कही।

उन्होंने कहा कि बुद्ध धर्म को जन और जनपद तक लेकर गये। केदार की कविताओं में यह जन और जनपद अनेक रूपों में मौजूद है। वे इतिहास की रूढ़ छवि से बुद्ध तक नहीं अपितु वर्तमान से यात्रा करते हुए बुद्ध तक जाते हैं। वे बुद्धत्व के मर्म को ग्रहण करते हैं। वे बुद्ध के विचारों को युद्ध में बदल देने को गहरी पीड़ा और बेचैनी के साथ देखते हैं और उसका विरोध करते हैं। वे बुद्ध के संदर्भ से पृथ्वी के भविष्य की चिंता को लेकर सजग होते हैं।

संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो सदानंद शाही ने कहा कि बुद्ध का रास्ता करुणा , मैत्री का रास्ता था। केदारनाथ सिंह ने कहा था कि बुद्ध के बारे में सोचना पृथ्वी पर पानी के भविष्य के बारे में सोचना है।

जे बी महाजन डिग्री कालेज के प्राचार्य प्रो मधुप कुमार ने कहा कि बुद्ध आत्मीयता के साथ प्रतिरोध की संस्कृति बनाते हैं। केदार जी कविताओं में उन्हीं की तरह आत्मीयता के साथ प्रतिरोध है। केदार जी में अद्भुत सजगता थी। उन्होंने कविता की तरह अपने जीवन को भी बनाया था। वह अपने जीवन में निरंतर घूमते रहे और अपने शिष्यों को भी पर्यटक बनने को निरंतर प्रेरित करते थे।

वरिष्ठ आलोचक रघुवंश मणि ने कहा कि केदार जी का जीवन सहजता का था और उनकी रचना प्रक्रिया में भी सहजता थी। यह सहजता ज्ञान और बोध से प्राप्त होता है। उनको उस सामान्य जनता में विश्वास था जिसका जीवन  ‘ कर्म संकुल जीवन ‘ है। उनकी कविता स्मृतियों की कविता है। उनका सौंदर्य और कला पर हमेशा विश्वास बना रहा। वे बहुत ही सावधान कवि है जो वर्तमान व भविष्य की चिंताओं को बार- बार रखते हैं।

आगरा से आये ब्रजराज सिंह ने कहा कि केदार जी की तमाम कविताओं में बुद्ध का प्रभाव है। कुछ कविताएँ सीधे बुद्ध को संबोधित है। उनकी कई कविताओं में पृथ्वी आती है। केदार जी बुद्ध की तरह अपनी कविताओं में दुःख के बारे में और दुःख से दूर के जाने की बात करते हैं । वे बुद्ध को आस्था या पूज्य भाव से नहीं देखते बल्कि उनसे संवाद करते हैं और प्रश्न करते हैं। वे बहुत सूक्ष्म तरीक़े से बुद्ध से अपनी असहमतियाँ भी रखते हैं।

धन्यवाद ज्ञापन बुद्ध महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो राजेश सिंह ने किया।
इस सत्र का संचालन बुद्ध महाविद्यालय में हिन्दी के शिक्षक डॉ गौरव तिवारी ने किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के तसरे दिन आखिरी सत्र में प्रसिद्ध कथाकार एवं कवि उदय प्रकाश की अध्यक्षता में युवा कवियों के साथ वरिष्ठ कवियों ने काव्य पाठ किया।

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