विचार

शिक्षकों से मारपीट के आरोपियों का अभिनंदन कैसी गुरु-शिष्य परंपरा है ?

आलोक शुक्ल 

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस की मौजूदगी में गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव पर सरेआम हमला करने के आरोपियों के जमानत पर छूटने के बाद एबीवीपी कार्यालय में दो महिला प्रोफेसरों द्वारा आरती, फूल माला और अक्षत से स्वागत-अभिनंदन करने को जस्टिफाई करने के लिए परिषद की ओर से अब कुतर्क पर कुतर्क गढ़े जा रहे हैं। लेकिन, ये लोग चाहे जितना कुतर्क गढ़ लें, चाहे जितना गाल बजा लें, इस घटना से ‘ज्ञान-शील-एकता’ के मुखौटे तले छिपा एबीवीपी का असल चेहरा उजागर हो गया है।
परिषद की ओर से कहा जा रहा है कि कुलपति भ्रष्ट व निरंकुश हैं, छात्र विरोधी हैं और लोकतांत्रिक ढंग से आन्दोलन कर रहे छात्रों को कांग्रेस हमलारोपी बता रही है। परिषद का यह भी कहना है कि विद्यार्थी परिषद के 75 वर्ष की यात्रा में शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन में शिक्षक-छात्र, दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। और विद्यार्थी परिषद गुरु-शिष्य परंपरा का पोषक रहा है।
क्या परिषद का यही सकारात्मक योगदान है कि छात्र अपने कुलपति को पीटें और शिक्षक उन पीटने वाले छात्रों का अभिनंदन करें ? एबीवीपी स्वयं को गुरु-शिष्य परंपरा को मानने वाला कह रही है, तो फिर उसे यह बताना चाहिये कि गुरुकुल के सबसे बड़े, मुख्य आचार्य के साथ ही कुलसचिव और नियंता (दोनो शिक्षक) से सरेआम मारपीट के आरोपियों को उसी गुरुकुल के आचार्यों द्वारा अभिनंदन करना, कैसी गुरु-शिष्य परंपरा है ? क्या यह नफरत की शिक्षा को बढ़ावा देना नहीं है ?
इसमें कोई दो राय नहीं कि कुलपति भ्रष्ट, निरंकुश, संवादहीन होने के साथ ही छात्र, शिक्षक, कर्मचारी विरोधी हैं। लेकिन, इस बिना पर उन्हें मारने पीटने, सजा देने का अधिकार एबीवीपी को किसने दे दिया ?
विद्यार्थी राष्ट्र की नींव हैं और विश्वविद्यालय ज्ञान-विज्ञान का शोध केन्द्र। यह सुसभ्य और सुसंस्कृत नागरिक गढ़े जाने की संस्कारशाला भी है। एबीवीपी को यह भी बताना चाहिए कि वह कैसा परिसर बनाना चाहती है? ज्ञान-विज्ञान का शोधकेन्द्र या अराजकता का अड्डा? और कैसे विद्यार्थी गढ़ना चाहती है, शोधार्थी या अराजक? इस देश को कैसे नागरिक देना चाहती है, सभ्य, सुसंस्कृत या गुंडा, मवाली ?
विश्वविद्यालय से जुड़ा हर कोई इस बात को जानता है कि आज एबीवीपी द्वारा भ्रष्ट, निरंकुश, संवादहीन, छात्र विरोधी एवं न जाने और क्या-क्या अलंकारों से विभूषित कुलपति प्रो. राजेश सिंह कुछ महीने पहले तक एबीवीपी से विभिन्न अवसरों पर सम्मानित होते रहे हैं। यह भी कोई छिपी बात नहीं है कि पिछले तीन साल से विद्यार्थी परिषद के कार्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालय के विभिन्न सभागारों एवं अतिथि भवन का नियम विरुद्ध उपयोग इसी कुलपति के संरक्षण में होता रहा है। कुलपति जब तक विद्यार्थी परिषद के हित साधक बने रहे, अच्छे थे और आज बुरे हो गये! दरअसल, विद्यार्थी परिषद छात्रों के हित में नहीं, बल्कि अपना हित न सधने की वजह से कुलपति पर हमलावर है और परिसर को अराजकता का अड्डा बना देने पर आमादा है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है )

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